(भाव प्रधान हृदय की रचना कौन किसी का भाव बिना)
ज्योति पर्व - मकर संक्रान्ति
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात हमारे तथाकथित बुद्धिजीवि, जिस निर्दयता के साथ अपनी सभी पुनीत पुरातन परम्पराओं को प्रगति शीलता के नाम पर पांव तले रौंद रहे है, यह उस मनोवृत्ति का परिणाम है जिसमें स्वतन्त्रता के पश्चात तन तो इस देश की सौंधी माटी का था, किन्तु मन पश्चिम की भौतकता, उसकी चकाचैंध पर लट्टू और अंग्रेजियत का गुलाम था। वह मनोवृत्ति यह चाहती थी कि इस देश को उसी रंग में रंग दिया जाये। भले ही इसके परिणाम आगे चलकर कैसे भी हो। आज हमारी दशा यह हो गई है कि हम अपने पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तीज त्यौहारों भी बजाय इसके कि उनका अनुसंधाान होता, इन पर्वो के पीछे क्या क्या रहस्य दिये हुये है उनका जन साधारण को बोध कराया जाता उलट अंधविश्वास, ढोंग, गले सडे़ रीत-रिवाज की संज्ञा देकर उनसे घृणा उत्पन्न की जा रही है। ये लोग 25 दिसम्बर को तो बड़ा दिन कह कर उसे बडे़ उत्साह से मानते है किन्तु इनसे जब पूछा जाता है कि यह बड़ा दिन कैसे? तो कोई उत्तर नहीं मिलता। बस यही कि यह ईशा का जन्म दिन है-बस।
हमारे मनीषियों ने जिस जिस पर्व का भी, जो जो समय निर्धारित किया है उसका बहुत ही बड़ा महत्व है अब मकर संक्रान्ति को ही लीजिये, यह पर्व हर वर्ष 14 जनवरी को ही आता है। आइए इसे ज्योतिष विज्ञान की पैनी दृष्टि से देखें।
काल के आठ भाग किये गये है- संवत्सर, अयन, ़ऋतु, मास, पक्ष, वार, तिथि, नक्षत्र-
संवत्सर - पूर्ण वर्ष
अयन- दो -उत्तरायण और दक्षिणायन
ऋतु- छः- वसंत,ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर।
मास- बारह- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाड़, श्रावन, भादों, क्वार, आश्विन, कार्तिक, पूस, माघ, फाल्गुन।(मास भी दो पद्धतियों से प्रचलित है-सौर और चन्द्र)
पक्ष- दो- (शुक्ल और कृष्ण पन्द्रह पन्द्रह दिन के)
वार- सात‘ ग्रहों के नाम पर पर -रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, वृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार(राहु केतु छाया ग्रह हैं)।
तिथि-मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर पूर्णमा तक
नक्षत्र- अभिजित से शतमिषा नक्षत्र तक 27 नक्षत्र।
यहां और काल खंडों को न छूते हुये मूल विषय पर अधिक प्रकाश डालना ही उचित होगा। गीता के आठवें अध्याय के24 और 25 वें श्लोक में दो अयनों का बड़ा ही रोचक वर्णन मिला है-
अग्निज्र्याेतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्म्विदों जना।।
धूमो रात्रि तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमासं ज्योतियोगी प्राप्त निवर्वते।।
जिस उत्तरायण की इतनी महिमा गीता में गायी गई। वह प्रारम्भ होता है वह दिन है जब सूर्य देव, अपनी छः मास की कर्क राशि से लेकर धनुराशि की दक्षिणायन की यात्रा पूर्ण कर, उत्तरायण की छः मास की यात्रा अर्थात् मकर राशि से मिथुन की यात्रा प्रारम्भ करता है। इसी दिन से दिन तिल-तिल कर बढ़ने लगता है। कहा भी है-
तिल-तिल बढ़ता माघ तो - पग फागुन फैलाता।
दिवस महाशिवरात्रि का- करता सम दिन रात।।
अब हम पूछना चाहते हैं उन मानसिक दासता की जंजीरों में जकड़े हुये उन लोगों से बढ़ा दिन कहाॅ से हुआ। वह जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला दिन या शिशिर के तमस में डूबा 25 दिसम्बर। इसी उत्तरायण के अवसर पर दिन (प्रकाश) बढ़ता है, रात्रि का तमस घटता है। इसी लिये इसको अंधकार पर प्रकाश का विजय दिवस कहा गया है। शायद इसी लिये इस मुक्ति मार्ग की प्रतीक्षा के अखण्ड ब्रह्मचारी भीषम पितामाह ने शरशैया पर पड़े हुये भी अपने प्राणों को रोके रखा था।
इस दिन स्नान दान की बढ़ी महत्ता है। विशेष रूप से त्रिवेणी में गंगा- यमुना और सरस्वती के संगम पर। यहां एक संदेश भी मिला है। गंगा भक्ति का प्रतीक, यमुना कर्म का और सरस्वती ज्ञान का। इन तीनों को मानव, जीवन में धाारण कर समाज, देश जाति को महान बना सकता है, अन्यथा नहीं।
अब दान को लीजिये- खिचड़ी (अन्न) गुड़, तिल आदि इस दिन दान किया जाता हैः-
खिचड़ी- हर देश और समाज में चाहे वह कितना ही साम्यवादी क्यों न बने, गरीबी की रेखा से भी नीचे के लोग मिलते है। ऐसे लोगों की सहायता कर सम्पन्न अपने विपन्न बन्धुओं का ऋण उतारें।
गुड़- गुड़ ही क्यों? सुश्रुत इस का उत्तर देता है। शुद्ध नया गुड़ जो इन्हीं दिनो बनता है, मीठा होता है, चिकना, मूत्र और रक्त शोधक, वातनाशक, कफकारी, बलवर्धक, शुक्रोत्पादक आदि होता है।
तिल- उसी ग्रंथ में तिल के गुणों का भी वर्णन है। यह मधुर पाकी, बलवर्धक, चिकना, वर्ण पर लेप करने पर लाभकारी , दांतों के लिये मुफीद, जठराग्नि और बुद्धि को बल प्रदाता, मूत्र के लिये गुणकारी, वात नाशक, सिर के बालों के लिये लाभप्रद। वैसे तो इस पर्व के विषय में जितना भी लिखा जाय कम है। सूत्रवत कहा जाये तो 1-स्नेह(तिल),2- सेवा संगठन(अन्न आदि का दान)3- मृदु भाषी(गुड़) होने का संकल्प! यह है मकर संक्रान्ति का संदेश। प्रकाश मार्ग पर चलने को अनुप्रेरित करता यह पर्व।
उत्सव है उत्साह प्रद- उत्साहों में प्राण।
प्राणों से जीवन जगे - जीवन राष्टारेत्थान।
हिन्दी दैनिक‘‘आज‘‘ बरेली संस्करण, 14 जनवरी 1990, पृष्ठ-6
हिन्दी दैनिक ‘‘जागरण‘‘ बरेली संस्करण, 14 जनवरी1990, पृष्ठ-11