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त्याग एवं बलिदान का दिवस बसत पंचमी (लेख)


भव्य भवन का निर्माण कर लिया हो जिस भांति किसी ने, साथ ही जीवनोपयोगी हर पकार की सुख सुविधाएं भी उपलबध हो उसमे। बाटिका में रंगारंग के पुष्प अपनी अनूठी छवि छटकाते दीख रहे हों। सुरभि पवन की संगीनी बन वायुमंडल को मादक बनाती फिर रही हो वहां। यह सब कुछ हाते हुए भी कुछ खोया-खोया सा, सूनापवन सा, एकाकीपन का एहसास, जिन्दगी का साज बजता हुआ भी बेआवाज सा, ठीक वैसे ही आंगन मे शिशु की किलकारियों ठुमक-ठुमक चलने पर कटि में बंधी करधनी की ध्वनि के बिना।

          ऐसी ही थी सृष्टिकर्ता की सृष्टि की दशा। जब उसने की थी इसकी संरचना। सब कुछ था, अलौकिक साहित्य़ ऋचाओं का साम्राज्य, दिव्यता के दर्शन, आहार-निद्रा-भय मैथुन, सब जीवों के लिए बनाया था एक समान ब्रह्म ने। किन्तु मानव था कर्म करने में स्वतन्त्र यन्त्रवत सा।

          शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध - इन सब तन्मात्राओं का योग भी किसी विरहिन के वियोग सा था। कुछ कमी सी लगती थी, यद्यपि वेदसमग्र समाज का पथ-प्रदर्शक-मंगल कामनाओं कर्ता-उत्कृष्ट ज्ञान विज्ञाान का संगम। यह सब कुछ एक पक्षीय था। इसीलिए परम शांति में भी अशाान्ति की गंध हृदय को विचलित सी कर रही थी।

          व्यक्ति जिससे समाज बनता है, उसकी भावनाओं की अभिव्यक्ति से शून्य इस ब्रह्मा की सृष्टि पर मां सरस्वती को दया आई। कहते हैं जब स्वर्ग में, देवी-देवर्षियों, ब्रह्मर्षियों की संगोष्ठी हो रही थी, उस समय सरस्वती को वैदिक ऋषि का उपहास करने पर दुर्वासा ने जो शाप दिया, उसके कारण सरस्वती को मृत्युलोक में अवतरित होना पड़ा था। वह दिन था माघ शुक्ला पंचमी का। इसी दिन क्यों? ऋतुओं में प्रथम ऋतु बसंत और ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ‘‘नन्दा-भद्वा-जया-रिक्ता और पूर्णा‘‘ पंचमी, पूर्णा की प्रथम तिथि है। बसंत की। इसीलिए इस दिन को ‘‘सरस्वती पूजन‘‘ दिवस के रूप में मनाया जाता है।

          बाल्मीकि के हृदय से परपीड़ा के आत्मसात् करने के पश्चात संसार का पहला श्लोकः-

              मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शापश्रती समाः।

              यत क्रौचीमथुनादेकमवधीः काम  मोहितम्।।

 

          गीत अकेला क्या करता? संगीत की स्वर लहरियों के स्नेह सूत्र में बंध गये दोनों। प्रकृति के आंगन को निवादित कर दिया कोकिल ने अपने पंचम स्वर से (सा, रे, गा, मा, पा पंचम स्वर है और पंचम सवर तक ही गायम में माधुरी है) आम्र के बौराने पर। जिसे सुनकर काष्ठ के कठोर दान को चीर कर वृक्षों पर से कोमल अंकुर फूटने लगे, कामदेव के स्वागत को उसे अपने पंचशर बनाने, संवारने हेतु समर्पित कर दिया स्वयं को सबने।

          जन्म और बलिदानी दिवस हैं यह एक साथ कामदेवका कुसमाकर का, मीन ध्वजका, हां रतिपति का। जिसने अपने पंचशर पैने पर के योगीश्वर शिव जी की समाधि को भंग किया ओर भस्म हो गया। वही मन्मथ, उनके तीसरे नेत्र के खुलते ही परहित-हेतु। तब रति के विलाप करने पर आशुतोष औघड़दानी ने वरदान में दिया ‘‘‘अनंगउसे।

          तारकासुर के अत्याचारों से यह संसार और देवलोक सबके सब त्राहि त्राहि कर रहे थे और उस असुर का वध शिव जी के पुत्र द्वारा ही होना था और हुआ भी यह ही। समाधि भंग हुई। शिव पार्वती का विवाह जिस दिन सम्पन्न हुआ वह ही तो शिवरात्रि का दिन है। शिव जी के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय द्वारा वध हुआ उस असुर का। देव-मनुज सब अभय को प्राप्त हुए। यदि कामदेव पीड़ित समाज के लिए अपना बलिदान देता तो यह सबकैसा होता? इसीलिए किसी ने कहा हेः-

          मृतक तनों में भरने आया नई चेतना नई रवानी।

          ऋतु पति, सद्पुरुषों सा त्यागी युग परिवर्तक जीवनदानी।।

          शासन काल में - प्रान्त पंजाब नगर स्यालकोट-सन् 1719 में एक सम्भ्रान्त खत्री परिवार के घर माता कौंरां की कोख से एक नक्षत्र उदितहुआ। पिता भागमल ने अपने इस नक्षत्र का नाम करण किया, हकीकत राय। भागमल सरकारी सेवा में रत थे, उस पद पर। बड़ा मान संम्मान था। शहर में उनका। बच्चे के जन्म के उपलक्ष्य में बड़ी खुशियां मनाई गई-दावते दी गई। बालक जब बड़ा हुआ तो उसे पढ़ने हेतु मस्जिद में भेजा गया। बड़ा मेधावी था बाल हकीकत में। शीघ्र ही उसने अरबी-फारसी में भाषायें सीख लीं। साथ ही कुर्रान की कुछ आयतें भी उसे कंठस्थ हो गई। इस कारण मौलवी उससे बड़ा प्यार करने लगा। जिसे देखकर उस शहर के चैधरी का लड़का अनवर, जो आयु में उससे बड़ा था- पढ़ने लिखने में शून्य, ईर्ष्याकरने लगा। इधर घर में माता कौरां अपने धार्मिक संस्कार उसमें कूट-कूट कर भर रही थीं, पुराणिक कथायें सुना-सुना कर।

          जैसा आजकल भी कक्षा में अध्यापक के होने पर विद्यार्थी ऊधम मचाने लग जाते है, वैसे ही तब भी मौलवी के कुछ देर को कहीं जाने पर, बच्चे हुल्लड़बाजी पर उतर आये सारे मदरसे में मात्र एक ही हिन्दू बच्चा था हकीकत राय। चैधरी के लड़के ने और बच्चों के साथ मिलकर हकीकत को चिढ़ाने हेतु दुर्गा भवानी को अपशब्द कहें। पहले तो हकीकत ने उस सबको बहुत समझाया,किन्तु उन लोगों के बार बार दुर्गा का अपमान करने पर, जातीय गौरव का स्वाभिमान जाग्रत हो उठा हकीकत में और कहा, यदि मैं भी तुम्हारी फातमा के लिए ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करूं तो। बस इतना कहना ही था बाल हकीकत का, अनवर ने उसे पीटना शुरू कर दिया। हकीकत को। दूसरे बच्चे उसका साथ देने लगे। मौलवी के आने पर, सबने एक स्वर मेंकहा, आज इस काफिर ने हमारी फातिमा को गाली दी है। मौलवी हकीकत की प्रतिभा से बहुत ही प्रभावित था उससे प्यार करता था। उसने हकीकत से पूछा तो उसने सब कुछ सच सच कह दिया। अनवर चैधरी का बेटा था- उद्दण्ड भी था बहुत, इस भय से उसने हकीकत को ही डांट डपट कर उस समय सबको शांत कर दिया। किन्तु अनवर क्योंकि हकीकत से जलता था चैन से बैठा। उसने सारे शहर को और लड़को साथ मिल कर इस बात को सिर पर उठा लिया। आग की तरह फैल गई यह खबर, हकीकत ने फातमा को गाली दी है। बात काजी तक पहुंची, भागमल की सेवाओं को दृष्टिगत रखते हुये, उसने भी बच्चों को और उनके समर्थकों को समझाने की कोशिश की- किन्तु व्यर्थ। मुर्दे को दफन होने दिया गया। शिकायत अमीर बेग - स्यालकोट के हाकिम के पास पहुंची-उसने भी बात को बतंगड़ बनने देने हेतु इस पर धूल डालने काप्रयत्न किया। उसने सबको कहा, भागमल एक ईमानदार, नेक और शरीफ, सरकार के प्रति निष्ठावान व्यक्ति है, इसका यह इकलौता बेटा है, कान ऐंठ दिये हैं, समझा बुझा दिया है- अब बात को यहीं छोड़ो किन्तु शैतान कब मानता है। कट्टरपंथी मुफती के पास मुकद्दमा फिर पहुंचा, हकीकत को उसके इस जुर्म पर कबूल इस्लाम-इन्कार करने पर धड़ से सिर जुदा कर देने का आदेश। हाहाकार मच गया हर तरफ। मुफती के पास कई सिफारिशये बड़े-बड़े लोगों की पहुंचाई गई। सम्मानित व्यक्तियों ने उसके आगे हाथ भी जोडे़। भागमल और कौरां अपनी आंखों की ज्योति, प्राण प्रिय पुत्र के प्राणों की रक्षार्थ अपना सर्वस्व भी मुफती से ले लेने केा कहा। बटाले से हकीकत के साथ ससुर सास भी गये, उन्होंने भी अपनी अबोध पुत्री के सुहाग की भीख मांगी, सास ने तो मुफती के आगे नाक भी रगड़ी, किन्तु पत्थर किसी भी आंच से पिघला। बन्दी ग्रह में डाल दिया गया। हकीकत को उस दिन। दूसरे दिन आदेशानुसार कत्लगाह में लाया गया वीर बालक को। वहां भी तरह तरह के लालच दिये गये ‘‘औरत-दौलत-शौहरत‘‘ के उसे। बस इस्लाम कबूल कर लो। माता-पिता-सास-ससुर और सभी नेभी कहा- कर लो कबूल इस्लाम क्या जाता है? हमारी आंखों की ज्योति तो जगमगाती रहेगी- मां ने फिर रोकर कहा। परन्तु जो प्राणी संसार में मार्ग प्रदर्शन हेतु आते हैं वे भटकते नहीं।

          बाल हकीकत ने सबको बड़ा ही मार्मिक उत्तर दिया- ‘‘क्या इस्लाम कबूल करने से मौत नहीं आयेगी‘‘ क्या उत्तर था इसका किसी के पास? फिर उसने मां से कहा- मां तुम ही कहती थी आत्मा मरती नहीं, मात्र चोला बदलता है। मैं फिर चोला बदल कर आऊंगा। ऐसी मृत्यु तो बड़े भाग्य से मिलती है। मां रो मत गर्व करो मुझ पर, तुमने ऐसे पुत्र को जन्म दिया है। जो आज धर्म की बलिवेदी पर चढ़ रहा है। शहीदों नेसदा हंस कर मौत को गले लगाया है। हकीकत भी मुस्करा रहा था। उस समय मौत की प्रतीक्षा में। इतने में लाहौर से फरमान आया। यह तमाशा लाहौर में होगा। हजारों के सामने ताकि और भी इससे शिक्षा लें। हकीकत को लाहौर ले जाया गया। वहां भी भागमल ने बहुत प्रयत्न किया अपने बुढ़ापे के सहारे को बचाने हेतु। किन्तु एक ही उत्तर था। कबूल इस्लाम - या मृत्यु और हकीकत का भी वही उत्तर-

          सन् 1734 आयु का पंच दश का योग बसंत पंचमी का दिन सरसों ने बसंती चोला दिया हकीकत के हदय को। जल्लाद का भी मन भर आया, इति सुन्दर-सुकुमार इस वीर बालक को देख कर। हकीकत ने मुस्करा कर जल्लाद की ओरदेखा और कहा अपने कर्तव्य का पालन करो। इस वाक्य के पश्चात शब्द आकाश में समा गया। माटी का पुतला धरती की गोद में पड़ा था देखते ही देखते सबके हंस उड़ गया।।

           ‘‘सत-रज‘‘ का यह सौरभ, साहित्य-कला-संगीत, जीवित रह पायेगा-हुत आत्माओं को बिसरा कर भूलकर। इसी लिए प्रतिवर्ष बसंत पंचमी याद कराने आती है। उन्हें और कहती है, साहित्य कला-संगीत को मत दास बना देना विलासिता केतमों का!ये तीनों अति पावन है। इन्हें जन्मा है सरस्वती के मृत्य लोक के स्नेह ने, जिसके कारण उसे पड़ा है त्यागना देवलोक को।

 

1- हिन्दी दैनिकआज31 जनवरी, 1990 बरेली संस्करण, पृष्ठ 7 और 8