शिशु -शशि चढ़ती कला रूप की- पावन अति आनंदित-
तम का तांत्रिक टूना खंडित-कर नभ था अनुरंजित।
हुआ क्षितिज में जाने क्या कुछ-इतना जग ने देखा--
पड़ते ही यौवन के हाथों-चन्दा हुआ कलंकित।
मासिक पत्रिका ‘सरस्वती‘ जून 1961, पृष्ठ 421, संपादक-श्री नारायण चतुर्वेदी,इलाहाबाद।