जब मिला न कसक को सहारा।
वेदना ने सुमन - रूप धारा।।
बात अपनी हमें ले उड़ी है।
वरना जग है स्वतः एक कारा।।
तुम कहां तक यू ही साथ दोगे।
शुकरिया रे सितारो तुम्हारा।।
‘रवि‘ दिवस की कहानी न छेड़ो।
अब निशा का उदित है सितारा।।
एकान्त, मासिक पत्रिका, सं0 श्यामनारायण वेजल,नवम्बर 1964पृष्ठ -54शंकर प्रेस, बरेली से मुद्रित।