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रागिनी बन गीत मेरे गुनगुनाओ (कविता)


                इन तड़पते श्रावणों, को मत सताओ-
और अब इस दर्द को प्रिय मत बढ़ाओ।।

आंसुओं की राह में यदि मिलन तुमसे-
हो कहीं जाता, सुगम वन पंथ कटता,
टूटता कब दिल, प्रणय का, रूप का भी-
कौन जाने, किस सुमन की याद में यह-
नीर शवनम ने बहाये, प्रातवेला,
इस कदर तुम कामना को मत रूलाओ-
कुछ वचन तो भांवरों के तुम निभाओ।।

छोड़ पनिहारिन गयी जब, प्यास कैसी-
‘ओक‘ की तपती बनी अनभूतियां सब,
फिर अनेको, नव वधू सी ठुमक आयी-
नीर भरने, किन्तु निकली मूर्तियां सब,
प्यास बुझजाती भला कब, वह ुम्हारी-
भक्त थी, अनुरक्त तुमसे, बावरी सी,
इस कदर वन निठुर, नाता मत छुड़ाओ,
प्राण हो तुम, प्राण मेरे पास आओ।।

चन्द्र ने घूंघट उठाया, तो नशीली-
रात बनकर लडखड़ाई, योगमाया
दर्द मेरा यदि न आंचल थाम लेता-
तो न जाने, जन्मती कब प्रात काया,
याद होगा वह तुम्हें सब, जब मिले थे-
नयन पंकज, मूंद खिले थे, प्रथम क्षण में,
इस कदर क्या शीघ्रता थी, प्रिय बताओ।
संग निभाने आ रहा, रूक तनिक जाओ।।

मैं तुम्हें जाने न दूंगा, यों अकेले-
इस जगत से, ले निराशा बिन जिये ही,
मैं तुम्हें जाने न दूंगा प्यास लेकर-
घूंट मधु का, एक भी तो बिन पिये ही,
देख, जीवन आ रहा है झिलमिलाता-
ले बहारें, साथ अपने - चांदनी भी
रागिनी बन, गीत मेरे गुनगुनाओ।
शक्ति बिन शिव, शव बना कर मत नचाओ।।


दैनिकहिन्दी-‘स्वतंत्र भारत‘,लखनऊ ,9 जुलाई 1961, पृष्ठ-2 पर प्रकाशित